जीएसटी की भेंट चढ़ा देशी घी का कारोबार
व्यापारियों ने पांच फीसदी दायरे में लाने की मांग की
जयपुर, 14 सितंबर। 12 फीसदी जीएसटी के चलते पिछले एक साल से देशी घी का व्यापार लगभग ठप सा हो गया है। देशी घी की बिक्री नहीं होने से वर्तमान में उत्तर भारत के करीब 90 फीसदी डेयरी प्लांट बंद पड़े हैं। राजस्थान कॉपरेटिव डेयरी फैडरेशन के पास ही सरस घी का भारी स्टॉक मौजूद है। आरसीडीएफ के पास भारी स्टॉक का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बाजार में फरवरी माह में निर्मित सरस घी बिक्री के आ रहा है। इसका थोक बाजार भाव वर्तमान में 4800 रुपए प्रति टिन है, जबकि सितंबर माह का सरस घी बाजार में 4880 रुपए प्रति टिन बिक रहा है। व्यापारियों का कहना है कि घी पर 12 फीसदी जीएसटी एवं 1.60 फीसदी मंडी शुल्क लगाना कहां का औचित्य है। एस.आर. ट्रेडिंग कंपनी के रोहित कुमार तांबी कहते हैं कि देश के करीब छह करोड़ किसानों की आजीविका पशु पालन, घी, दूध, दही एवं पनीर आदि के उत्पादन पर आधारित है। जिन डेयरी उत्पादों से काश्तकार सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है, उस पर 12 प्रतिशत जीएसटी एवं 1.60 फीसदी मंडी सेस समाप्त कर देना चाहिए। तांबी ने कहा कि डेयरी उद्धोग को इस संकट से उबारने के लिए 12 प्रतिशत जीएसटी की बजाए सिर्फ 5 फीसदी जीएसटी के दायरे में घी को लाना बेहतर होगा। कई बार राज्य सरकार से अनुरोध करने के बाद भी घी से मंडी शुल्क नहीं हटाया गया है, जो कि सरकार की हठधर्मिता है। जानकारों का कहना है कि घी की कीमतें आम आदमी की पहुंच से दूर होने के कारण नकली देशी घी के कारोबार को भी गति मिली है।